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बुधवार, 2 मई 2012

बातों ही बातों में अरे, यह क्या हुआ, ऋषभ?

बातों ही बातों में अरे यह क्या हुआ ऋषभ
खिलता हुआ गुलाब अँगारा हुआ ऋषभ

कल तक था जिनकि आँख का तारा हुआ ऋषभ
उनकी हि आज आँख का काँटा हुआ ऋषभ

कोई न साथ दे सका इस प्रेम पंथ में
तलवार-धार पर सदा चलना हुआ ऋषभ

किरणों के रंग फर्श प' गिर कर चटक गए
ज्यों इंद्रधनुष काँच का टूटा हुआ ऋषभ

पल पल धुएँ में दोस्तो! तब्दील हो रहा
बचपन के प्रेमपत्र-सा जलता हुआ ऋषभ

छू जाएँ तेरे होंठ कभी भूल से कहीं
इस चाह में तन त्याग के प्याला हुआ ऋषभ

लहरों प' प्यार-प्यार-प्यार-प्यार लिख रहा
कहते हैं लोग-बाग दीवाना हुआ ऋषभ

पूर्णकुंभ- अगस्त 2002 - आवरण पृष्ठ 

1 टिप्पणी:

Suman ने कहा…

बहुत सुंदर रचना ......