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गुरुवार, 9 अगस्त 2012

हम छी मनमौजी (स्वेच्छाचार)



हम छी मनमौजी 
('स्वेच्छाचार' का मैथिली अनुवाद)
हिंदी मूल - डॉ. ऋषभ देव शर्मा  *  मैथिली अनुवाद - अर्पणा दीप्ति   


 हँ, हम छी मनमौजी.

ओ हमरा हर में जोतअ चाहलैथ
हम जुआ गिरा देल्हूँ.
ओ हमरा पर सवारी लादअ चाहलैथ
हम हौदा उलइट देल्हूँ.
ओ हमर माथ रौंद चाहलैथ
हम कुंडली लपेटि पट‌इक देल्हूँ.
ओ हमरा जंजीर में बान्ह चाहलैथ
हम पग घूँघरु बान्हि सड़क पर आबि गेल्हूँ!

आब ओ हमरा सँ कर‍इत छथि घृणा,
हम छी महा ठगनी कह‍इत छथि,
हमर परछाईं तक सँ दूर भाग‍इत छथि,
बेचारा परछा‍ईं सँ भअ चूकल छथि आन्हर,
हिरण्मय आलोक कोना झेलताह।

हँ हम छी मनमौजी!

हम अपन गिरिधर सँ प्रीत कयलहूँ,
हुनका वरण कयलहूँ,
गल्ली गल्ली ढिंढोरा पीटलहूँ
जिनकर माथ पर मोर मुकुट मेरो पति सोई।

हमर पियाअक सेज सूली पर,
अति मन भावन,
हम एकरा स्वयं चुन्लहूँ।



स्वेच्छाचार

                                                                                                                              हाँ, मैं स्वेच्छाचारी हूँ.

उन्होंने मुझे हल में जोतना चाहा
मैंने जुआ गिरा दिया ,
उन्होंने मुझपर सवारी गाँठनी चाही
मैंने हौदा ही उलट दिया,
उन्होंने मेरा मस्तक रौंदना चाहा
मैंने उन्हें कुंडली लपेटकर पटक दिया,
उन्होंने मुझे जंजीरों में बाँधना चाहा
मैं पग घुँघरू बाँध सड़क पर आ गई!

अब वे मुझसे घृणा करते हैं
माया महाठगनी कहते हैं
मेरी छाया से भी दूर रहते हैं.
बेचारे परछाई से ही अंधे हो गए
हिरण्मय आलोक कैसे झेल पाते!

हाँ,मैं हूँ स्वेच्छाचारी!

मैंने अपने गिरिधर को चाहा
उसी का वरण किया
गली गली घोषणा की-
जाके सिर मोर मुकुट मेरो पति सोई!

मेरे पति की सेज सूली के ऊपर है,री!
मुझे बहुत भाती है,
मैंने खुद जो चुनी है!!

('देहरी', पृष्ठ 41)

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